ऐ दुनियां की किस्मत लिखने वाले,
तू शायद अपनी ही किस्मत लिखना भूल गया ||
नारायण का अवतार हो कर भी तू ,
स्वयं अपने लिए कांटे बिछा गया ||
जन्म चाहे अयोध्या के राज महल में लिया ,
या मथुरा के कारागार में,
सुख तो ना पाया कभी,
अपने ही पुरे जीवन संसार में ||
बड़े बड़े राक्षस मारे |
जीत लिए सीता का राज-स्वयंवर |
राधा ने भी क्या खूब बसाया मन मंदिर में |
प्रेम का अनूठा नाम,
रच गया संसार में,
राधे- श्याम, सीता- राम बनकर।
जन्म लेते ही अपनी माँ का चेहरा भी न देख पाया |
एक ही पल में राज-सिंहासन को त्याग, बनवासी हो गया |
जिस प्रेम की दुहाई देती है दुनिया !
उसी वियोग में क्यों सीता से दूर होकर कठोर बन गया ?
और वहीं राधा को अपने मन में बसाकर,
पल पल खून के आंसू रोया ||
ऐ दुनियां की किस्मत लिखने वाले !!
तू अपनी हीं किस्मत, काँटों से बिछा गया |
अंत समय में अपने पिता को कांधा भी ना दे पाया |
राजा होकर भी तू, एक झोपडी में अपना संसार बसाया।
जिस रावण के अहंकार से धड़क उठा था भूमण्डल,
सीता का अपहरण कर, जिसने रुलाया तेरा मन,
क्यों रचा युद्ध का इतना बड़ा आडम्बर ?
जब शक्ति सिर्फ तुझमे थीं !!
रावण का अंत कर, पल में सीता को अपने पास बुलाकर।
क्यों गोकुल में राक्षसों का आतंक मचवाया ?
कंस का अंत, तो सिर्फ, तेरे ही हाथों था लिखा गया ।
मर्यादा पुरुषोत्तम होकर भी प्रजा ने आरोप लगाया |
सूर्यवंश कि कीर्ति बचाने के लिए,
बिन जाने अपने बेटो से ही युद्ध में भिड़ गया।
भरी सभा में स्त्री के सम्मान में
साडी का सेहलब ला दिया |
भरी सभा में भाई सिसुपाल के कटु शब्द सहे,
वचन जो तूने दिया अपनी भुआ को, १०० गलतिया भुलाकर |
धर्म की स्थापना के लिए, शस्त्र को त्यागा ,
भगवत गीता के जरिये दुनिया को रास्ता दिखाया |
महाभारत ने बदल दिया रुख, हवा का दुनिया से ,
पर अंत में गान्धारी के कड़वे श्राप को भी हस्ते हस्ते स्वीकारा ।।
कहाँ थी वो शक्ति धनुष-बाण की !
कहाँ थी शक्ति सुदर्शन चक्र की !
क्यों सहा तूने, स्वयं नारायण का रूप है तू |
तकलीफो को सहकर भी कैसे मुस्कुरा था तू ?
हर परिस्थिति में शांत कैसे रहता था तू ?
दे दे वरदान शांति का !!!
आखिर में इंसान नहीं, राम नहीं, कृष्ण नहीं !!
भगवान नारायण ही है तू |||