Wednesday, September 28, 2022

63. नारी साधारण नहीं ||

                                      

तू ज्वाला है, तु शांत शीतल छाया भी हैं,
तू बहती धारा है, तू क्रोध से भरी सुनामी भी हैं।
तुझी में लक्ष्मी बाई है, तू ही मीरा है
तुझी से ये जग है, तुझी से मेरा घर है। 
तू नारी है, तू साधारण नहीं
तुझी में दुर्गा सरस्वती है।

तू ना साधारण , शक्ति तेरी विशाल है
हाथ उठा दे तो वो आशीष बन जाए
और मुट्ठी बंद ले तो वो अंत हो जाए ।
तू अबला नहीं, शांत रहना बस तेरी आदत है 
कमजोर समझा जिन राक्षसों ने तुझे 
दुनिया से उनका वजूद उजड़ चुका  है ।
तू नारी है, तुझी में महाकाली है ।

रोक ना पाया कोई, कोशिशे हज़ार हुई है 
जब बात आत्मविश्वास की आई हैं। 
अंतरिक्ष में जो पहुंच गई वो कल्पना हैं, 
बिना पैर जो एवेरेस्ट चढ़ गई वो अरुणिमा हैं। 
हालातो को झुका दे , वो शक्ति तुझमें है।
तू नारी है, तुझी में मां आदी शक्ति है ।

तू मां बनकर प्यार लुटती है,
हर पल तैयार, थकती नहीं है।
तू घर में खुशियां बिखेरती है,
तू घर से निकल देश को चलती है। 
तू नारी है, तू ही  महालक्ष्मी है ।

जब बात आई स्वाभिमान की
तो क्रूरता का संहार किया वो तू ही फूलन देवी है ।
ये नवरात्र है, शक्ति का स्वरूप तुझमें है। 
बांड मुट्ठी, तोड़ जंजीरे,
ये समाज तुझे क्या रोकेगा
तू खुद एक उड़ता परिंदा है ।
















Monday, September 26, 2022

62. Be Proud !!!! "You are a Agarwal"

कहते है कि किसी भी समाज का धरोहर उसका इतिहास होता हैं। और अग्रवंश का इतिहास हर एक अग्रवाल को गर्व मेहसूस करवाता हैं। 

अग्रवाल वंश के राजा महाराज अग्रसेन जी ने 5900 साल पहले ही अग्रवाल समाज के भविष्य कि परिकल्पना कर ली थी। ये 5 बातें जो आज मैं यहाँ लिख रहा हूँ, आपको एक अग्रवाल होने पर गर्व मेहसूस करवाएगा। 

1. महाराज अग्रसेन ने एक ईंट  - एक रुपया की प्रथा शुरू करवाई थी जिसका मतलब हैं कि कोई भी  जब अग्रोहा में बसने आता था तो अग्रोहा शहर  के हर घर से उस इंसान को एक ईंट और एक रुपया दिया जाता था। एक ईंट इसलिए ताकि वो एक-एक ईंट से अपना घर बना सके और एक रुपया इसलिए ताकि एक-एक रुपया जमा कर वो  नया व्यापार कर सके। 

यहाँ महाराज अग्रसेन जी ने 2 बाते सिखाई। पहली Teamwork, अगर लोगो का साथ मिलता रहा तो हर कोई कामयाब हो सकता हैं।  दूसरा Business Development, महाराज अग्रसेन जी से व्यापार को बढ़ावा दिया नाकि नौकरी को। 

इसलिए कोई भी अग्रवाल ज्यादा दिन तक किसी कि नौकरी नहीं कर सकता। देर-सवेर ही सही पर व्यापार तो करेगा ही।  व्यापार खून में जो दाल दिया था इन्होने। 

2. एक दिन महाराज अग्रसेन की सभा चल रही थी कि महाराज के मंत्री ने हिचकीचाते  हुए महाराज से कहाँ -"महाराज आपके पिताजी का एक सपना था जो आपने अभी तक पूरा नहीं किया।"

महाराज भी आश्चर्य से पूछे कि ऐसा कौनसा अधूरा सपना हैं  उनके पिताजी का जिसे अभी तक वो पूरा नहीं कर पाये 

मंत्री ने जवाब दिया कि उनके पिताजी चाहते थे कि अग्रोहा में एक भव्य महल का निर्माण हो जिसमे हर एक सुख-सुविधा  मौजूद हों। 

महाराज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की महल उनके पिताजी का सीर्फ एक सपना था, ज़िद  नहीं।  महाराज अपना धन महल बनाने में खर्च नहीं करना चाहते थे जो आने वाले समय में सीर्फ लोगो के मनोरंजन का ही पात्र रहेगा और किसी को इस से कोई फ़ायदा नहीं होगा। इसके बदले महाराज अपना धन व्यापार, कला, में लगाना ज्यादा जरुरी समझा जिससे आने वाले समय में लोगो का और साथ ही साथ समाज का भी भला होगा।  हर किसी का लाभ होगा। 

Investment की better  strategy की  निभ तो  उसी दिन रख दी गई थी। आज भी जब अग्रवाल invest करता है तो आने वाले लम्बे समय तक का लाभ पहले ही अंकित कर लेता है। 

3. महाराज अग्रसेन ने माँ लक्मी की कड़ी तपस्या कि थीं जिससे  फल स्वरुप उन्हें ये वरदान मिला कि माँ लक्मी अग्रवंश की  कुल देवी कहलाएगी। सुख और समृद्धि हमेसा अग्रवंश में रहेगी। 

इसलिए हालात चाहे जैसे भी हो पर हर  अग्रवाल अपने मेहनत कि रोटी खुद कमाता हैं।  रास्ते में चलते हर एक अग्रवाल को देखकर यही लगता हैं कि बंदा अच्छे पैसे वाले और संस्कारी घर से हैं। 

4. हमारे राजा-महाराजा छत्रिया हुआ करते थे पर महाराज अग्रसेन जन्म से एक बैसि जाती के थे। एक बैसि जाती के होने के बावजूद  अपनी सूद -बुद और बहादुरी के कारण छत्रिया होने का सम्मान मिला और चवर, छत्र, तलवार धारण करने का सम्मान मिला। 

इसलिए जब घर में शादी होती हैं तब दूल्हे को इस कदर सजाया जाता है - सर पे किलंगी,   ऊपर छत्र  और कमर पे तलवार धारण कर इसकदर बारात लेकर निकलता हैं जैसे साक्षात् महाराज अग्रसेन जी की सुशोभित झांकी निकल रही हो। 

5.  इंसान अपने उम्र के हिसाब से काम करता हैं। जब साशन करना था तब राजा बनकर सिंहासन  पर बैठे और जब तप करने की उम्र आई तब राज-पाठ अपने बेटों को सौंप कर तपस्या करने निकल पड़े। 

Retirement कि better policy तो उसी दिन सीखा दी थी महाराज जी ने  जो हम आज भी निभाते हैं। पूरी मेहनत लगाकर हम अपना empire बनाते हैं और जब मेहनत करने की उम्रः ख़त्म हो जाती हैं तब अपने empire की बागदौड अपनी अगली पीढ़ी को सौंप कर धर्म के काममो में लग जाते हैं।

जय अग्रसेन जी ||