क्या ये सच हैं?
क्या हम ये मान ले ?
जो कल तक आप साथ थी ! आज नहीं ?
क्यों बिलक्ति हमें छोड़ गई ?
शायद आपकी जरुरत उस ईश्वर को हमसे ज्यादा थी।
आत्मविश्वास से भरी और सबको हिम्मत देती आप थी।
जीवन के संघर्ष को आप आसानी से संभाल लेती थी।
भक्ति रस में डूबी रहती और दादी की कृपा आप पर थी।
कैसे याद ना करू उन हाथो को,
जो बड़े प्यार से मेरे सिर को सहलाती थीं।
भयंकर बिमारी से हस्ते हस्ते लड़ गई,
वो सुरवीर महानारी आप थी।
हालातों से डरना नहीं बस आगे भड़ना है
ये सिख आप हमको दे गई।
भरोसा रखकर अपने नाम का डंका खुद बजाया,
वो कृष्णम बुटीक के नाम से अपना नाम खुद बनाया।
कैसे याद ना करू उन पकवानो को,
जो बड़े प्यार से आप बनाकर खिलाती थी।
शायद ही कोई आँखे आपकी बिदाई पर ना रोइ होगी,
सेहम गए सब और पिछे अकेला हम सब को छोड़ गई।
सिखाया तो बहुत है आपने पर नजाने कितना संभल पाएंगे,
पास ना होकर भी शायद आपको मेहुस हम करते रहेंगे।
याद आपकी नहीं आएगी, ये बोलना तो संभव नहीं होगा
पर आप अपना हाथ हम पर रखना
ये मेहसूस आपके होने का हमें दिलाएगी।