Thursday, November 19, 2020

36. Childhood disappears with increasing age.

क्यों ऐसा होता है !!!
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम  होता चला जाता है।
क्यों ऐसा होता है !!! 

जिन vacations का इंतज़ार हम पुरे महीनो -साल करते थे, उन्ही vacations को एक बार फिर जीने को जी चाहता है,
क्यों ऐसा होता है !!!
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।
  
सपना था जो कुछ बनने का, जो हर रोज बदलता था, 
कभी सोचते डॉक्टर बनना है तो कभी इंजीनियर, 
तो कभी सोचते Lawyer बनना है तो कभी Singer,
पर बनते वो है जो नियति ने हमारे लिए सोचा है। 
क्यों ऐसा होता है !!!
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।  

College में वो यारो की unity, जिनसे भिड़ने से पहले एक बार तो college का management  भी घबराता था, 
आज उन्ही यारो के साथ एक बार फिर उन दिंनो को जिने का मन करता है। 
क्यों ऐसा होता है !!!
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।  

त्यौहार जिनका इंतज़ार महीनो से लगा रहता था, आज एक calendar की date की तरह निकल पड़ता है। 
जिन birthday के लिए 20 days to go, 15 days to go, 10 days to go लगा रहता था, 
आज वही birthday एक गुमनाम date की तरह निकल पड़ता है। 
क्यों ऐसा होता है !!! 
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।  

कभी रोज एक ऐसा दिन भी था जब सुबह की शुरूवात से चहरे पर एक गज़ब सा  रौनक दिखता था,
पर क्यों आज दिन भी खत्म हो जाता है पर कंधे का बोझ कम नहीं होता। 
शरारते  जो हम  करते थे वो बचपन में नादानी थी पर अगर आज करे तो गुनाह बन जाता है। 
क्यों ऐसा होता है !!! 
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।  

यु तो शायद ये संभव नहीं पर कुदरत के आगे सबका सर झुकता है,
बचपन को एक बार फिर जिने का मन करता है। 
क्यों ऐसा होता है !!! 
बढ़ते उम्रः के साथ बचपन कही गुम होता चला जाता है।  
बचपन कही गुम होता चला जाता है।  







Monday, November 16, 2020

35. THE LEFT OUT TIME.

 कल एक बात का एहसास हुआ कि हमारा बचपन बहुत जल्द बित गया। आज बहुत दूर आ गए है हम। 

कल गुवाहाटी से आते वक्त सिर्फ 5 मिनट के लिए अपने ननिहाल पाठशाला गया था। पाठशाला गए हुए मुझको कम से कम 2-3  साल बित गए थे। इसमें सबसे बड़ी आश्चर्य बात मुझे ये लगी कि पाठशाला का नक्शा ही बदल गया और जहां हम महीनों बचपन बिताते थे, जिन गलियों कि रौनक हम बढ़ाते थे आज वही गलिया मुझे अनजानी सी लगने लगी, मैं अपने ननिहाल को ही नहीं पहचान पाया। पहली बार अपने ननिहाल को शहर की चकाचौंद के बिच ढूंढना पड़ा। 

उस दिन ये एहसास हुआ कि क्या सच्च में ये वहीं पाठशाला है जहां छुट्टियों में हम महीनों रहकर आते थे। क्या सच्च में हम इतने बड़े हो गए हम !!!!

उम्रः के साथ साथ जिम्मेदारियां बद रहीं है और उसी के साथ समय बीतता चला जा रहा है और पुरानी यादे बस दिल के संदूक में दबे चले जा रहे है।