Wednesday, May 12, 2021

46. My Sea of Dreams.


ऐ ख्वाब !! तू दरिया है मेरे मन का। 
सोचता हूँ जितना तेरे बारे में,
उतना ही गहरा मेरा मन होता चला जाता। 
ऐ ख्वाब !!तू दरिया है मेरे मन का। 

कोशिशों की कस्ती में बैठकर, 
एक किनारे पर अपना लक्ष साद कर, 
चल पड़ा मैं, ऐ ख्वाब !
तुझे  लांघने !
अपने जान की बाज़ी लगाकर। 

कोशिशों की कस्ती जब पहुंची बीच मझधार  पर, 
चारो तरफ मैं अकेला, उस विशाल दरिया पर, 
हवाएं इस कदर चल रही थी, मेरे मन को चीरकर ,
लगा गिर जायूँगा बस लोगों में एक  उम्मीद बनकर। 

ना थी कस्ती चलाने की  समझ, बस चला रहा था। 
गिर जायु दरिया पर, तो ना तैर पाना जानता था। 
रुक जायु तो पता नहीं किस ओर  जाना  था। 
बस चलता था, ऐ  ख्वाब !
क्युकि मुझे तुझे लांघना  था। 


कसर नहीं छोड़ी मुझे झुकाने की. 
कसर नहीं छोड़ी मुझे डराने की. 
कसर नहीं छोड़ी मुझे वापस लौटाने की.
पर शायद मेरा विश्वास तेरे विशाल काये से बड़ा था। 
झुका नहीं, डरा नहीं, वापस लौटा नहीं,
बस आगे बढ़ता गया जबतक वो किनारा आया नहीं। 

अब वो दिन भी आया. 
मेरी कोशिशों की कस्ती को वो किनारा मिल गया। 
ऐ   ख्वाब !! मैं तुझे लाँघ आया, 
दरिया होकर भी तू मुझे रोक न पाया। 

ऐ ख्वाब, तू दरिया है मेरे मन का। 
सोचता हूँ जितना तेरे बारे में,
उतना ही गहरा मेरा मन होता चला जाता। 
ऐ ख्वाब !! तू दरिया है मेरे मन का। 







 

Friday, May 7, 2021

45. How Incredible Is Mother...

 माँ !!
कहने को तो बस दो अक्षरों का छोटा सा शब्द है ये,
पर समाता इसमें पूरा ब्रम्हांड हैं। 
दुनिया चाहे हमे कितना भी बुरा या अच्छा समझे
पर अपनी माँ के सामने आज भी हम एक नन्ही सी जान है। 
 
लोग चाहे कितना भी थोक बजाकर दावा करे हमे पेहचानने की 
पर मैं कहता हूँ, पहचानती हमे ये उनलोगो से कम से कम नौ महीने तो ज्यादा है। 

मेहसूस मेरे होने का मेरी माँ को  उसी दिन हो गया था 
जब pregnancy strip में बस एक लकीर बनकर मैं दिखा था। 

पता नहीं केसा एक  दरिया समाता है माँ  के आँखों में, 
मेरे रोने पर तो रोती  है, पर  मेरे हॅसने पर भी रोती है ,
मेरे  fail होने पर तो रोती है, पर मेरे पास होने पर भी रोती हैं, 
मेरे घर से दूर जाने पर भी रोती है तो घर जब लौट आता हूँ तब भी रोती हैं 
ये बेह्ते आँसुओ की लेहरे और कुछ नहीं मेरी माँ का  निस्वार्थ प्यार है। 

हमारी उदासी का राज  हमारी आँखे देख समझ जाती है, 
और झूठ हमारा झट से पकड़ लेती है। 
ये कला तो ईस्वर ने और किसी को नहीं बस एक माँ को ही दी हैं,
बिन कहे हर बात समझ जाती हैं। 

स्वस्त हूँ आज मैं जिसकी वजाह से,
वरना कसर नहीं छोड़ी थी मैने अपने आपको बरबाद होने से। 
ईश्वर सलामत रखें माँ को,
क्युकि औकात नहीं मेरी इनके सामने सर उठाने को।