Friday, May 7, 2021

45. How Incredible Is Mother...

 माँ !!
कहने को तो बस दो अक्षरों का छोटा सा शब्द है ये,
पर समाता इसमें पूरा ब्रम्हांड हैं। 
दुनिया चाहे हमे कितना भी बुरा या अच्छा समझे
पर अपनी माँ के सामने आज भी हम एक नन्ही सी जान है। 
 
लोग चाहे कितना भी थोक बजाकर दावा करे हमे पेहचानने की 
पर मैं कहता हूँ, पहचानती हमे ये उनलोगो से कम से कम नौ महीने तो ज्यादा है। 

मेहसूस मेरे होने का मेरी माँ को  उसी दिन हो गया था 
जब pregnancy strip में बस एक लकीर बनकर मैं दिखा था। 

पता नहीं केसा एक  दरिया समाता है माँ  के आँखों में, 
मेरे रोने पर तो रोती  है, पर  मेरे हॅसने पर भी रोती है ,
मेरे  fail होने पर तो रोती है, पर मेरे पास होने पर भी रोती हैं, 
मेरे घर से दूर जाने पर भी रोती है तो घर जब लौट आता हूँ तब भी रोती हैं 
ये बेह्ते आँसुओ की लेहरे और कुछ नहीं मेरी माँ का  निस्वार्थ प्यार है। 

हमारी उदासी का राज  हमारी आँखे देख समझ जाती है, 
और झूठ हमारा झट से पकड़ लेती है। 
ये कला तो ईस्वर ने और किसी को नहीं बस एक माँ को ही दी हैं,
बिन कहे हर बात समझ जाती हैं। 

स्वस्त हूँ आज मैं जिसकी वजाह से,
वरना कसर नहीं छोड़ी थी मैने अपने आपको बरबाद होने से। 
ईश्वर सलामत रखें माँ को,
क्युकि औकात नहीं मेरी इनके सामने सर उठाने को। 









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