Monday, June 14, 2021

47. कुछ परिवर्तन मुम्किन होते है

"कहते है जब दिलो में नफरत की जुवला इस कदर बढ़ जाती है कि किसी की भी फटकार, या सलाह, या तर्कीव उस नफरत कि आग को ठंडा नहीं कर सकती तब कोई Positive शक्ति, कोई दैविक शक्ति ही उस नफरत की जुवला को ठंडा कर सकती है।"

 मैंने इस Positive शक्ति को शाक्षात महसूस किया है। 

 गत कुछ सालों से मेरे चाचा और हमारे परिवार के बिच कई घरेलु मामलो को लेकर बात-विवाद चल रहा है। इन घरेलु मामलो को लेकर हम दोनों परिवारों में एक नफरत सा माहौल दिलो पर छाया हुआ था।  ये नफरत इस कदर थी कि  दोनों परिवार एक दूसरे को देखना तो दूर, एक दूसरे का नाम भी पसंद नहीं करते थे। इस नफरत ने पुरे परिवार को, सारे रिस्तेदारो को भी एक दूसरे से दूर कर दिया था।

और कहीं ना कहीं ये नफरत मेरे मन में भी अपने चाचा के लिए पल रही थी जिसे मिटाना शायद आसान नहीं था। मेरे मन में मेरे चाचा के प्रति नफरत, गुस्सा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा  रहा था। छोटे- बड़े का सम्मान बिल्कुल खत्म हो चूका था। 

एक घटना ने मेरे मन से 13 साल पुराने पलते नफरत को एक ही झटके में खत्म कर दिया। 

गत कुछ दिनों पहले मेरे चाचा और उनका पूरा परिवार कोरोना से संक्रमित  थे । चाचा समेत सब परिवार अपने घर में isolate हो चुके थे। मेरे पापा रोज चाचा से उनके और  उनके परिवार के स्वस्त की खबर लेते जरूर थे पर मेरे मन में कोई चिंता नहीं थी। कुछ दिंनो बाद मेरी चाची की तबियत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ गई , यहाँ तक की hospital में admit करने की नौबत आ गई। चाचा, चाची को Guwahati, Health City Hospital में admit कैरवाने ले जा रहे थे।  मुझे जैसे ही ये खबर पता चली, मेने सबसे पहले अपने पापा को जाकर ये बताई।  मेरे पापा ने चाचा से पूछा अगर मेरी जरुरत है तो मुझे साथ ले जाने  जिसपर मेरे चाचा ने मना कर दिया। 

शायद उसी वक्त ईस्वर ने इशारा दे दिया था कि यही वक्त हैं अपने फ़र्ज़ को निभाने का । एक ही  मिनट में बहुत सारे सवाल  मन को परेशान कर रहे थे कि चाचा और चाची दोनों कोरोना संक्रमित हैं तो इस हालात में कैसे चाचा hospital की formalities पूरी कर पायेगा?, कौन उनके पास रहेगा?, वो कैसे चाची का ख्याल रख पायेगा?, कहीं चाचा के कुछ हो गया तो क्या होगा ? इन सभी सवालो का जवाब उस वक्त मुझे सिर्फ एक ही नज़र आ रहा था कि मुझे इसके साथ जाना होगा। 

बिना दिल में कोई शिकायत रखे मैने चाचा  से बात कि जिसपर वो मुझे साथ चलने  से मना करने लगे पर उस वक्त शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। PPE KIT पहनकर, ईस्वर का नाम लेकर मैं चाचा-चाची से साथ Ambulance में Guwahati जाने को तैयार हो गया।  उस वक्त से लेकर Hospital में रहने के आखरी दिन तक मेरे मन में एक बार भी ये ख्याल नहीं आया कि हमारा पारिवारिक वैर चल रहा है। मेरे से जो और जितना अच्छा हो सका मैंने वो सब किया। हर वो कोशिश कि जिस से चाचा और चाची को कोई तकलीफ़ ना हो। 

ये 6  दिनों में बदलाव के नाम पर बहुत कुछ हुए। चाचा और मैं अपने मनभेद को छोड़कर वापस अच्छे से बात करने लगे, एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान के भाव वापस नज़र आने लगे, पुराने झगड़े के किसी भी बातों का जिक्र नहीं हुआ, क़रीबी रिश्तेदारों के साथ सम्बंद वापस सुधरने लगे, दिलों की नफ़रत खत्म होती नज़र आने लगी, निस्फिकर होकर एक दूसरे के प्रति विश्वास वापस मेहसूस होने लगे। 

ये वो बदलाव हैं जो शायद होना नामुमकिन सा था। ये और कुछ नहीं एक दैविक शक्ति ही थी जिसने सालों की नफरत को बिना किसी  फटकार के साथ प्यार में बदल दिया। ये वो दैविक शक्ति ही थी जिसने मुझे Guwahati जानने पर मजबूर कर दिया था।  ये वो दैविक शक्ति ही थी जिसने दिलों को परिवर्तित कर दिया। 

ये परिवर्तन अच्छा हैं। 







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