Wednesday, August 30, 2023

64. भाव भरी श्रद्धांजलि ||




क्या ये सच हैं?
क्या हम ये मान ले ?
जो कल तक आप साथ थी ! आज नहीं ?
क्यों बिलक्ति हमें छोड़ गई ?
शायद आपकी जरुरत उस ईश्वर को हमसे ज्यादा थी। 

आत्मविश्वास से भरी और सबको हिम्मत देती आप थी। 
जीवन के संघर्ष को आप आसानी से संभाल लेती थी। 
भक्ति रस में डूबी रहती और दादी की कृपा आप पर थी। 
कैसे याद ना करू उन हाथो को,
जो बड़े प्यार से मेरे सिर को सहलाती थीं। 

भयंकर बिमारी से हस्ते हस्ते लड़ गई, 
वो सुरवीर महानारी आप थी। 
हालातों से डरना नहीं बस आगे भड़ना है 
ये सिख आप हमको दे गई। 
भरोसा  रखकर अपने नाम का डंका खुद  बजाया,
वो कृष्णम बुटीक के नाम से अपना नाम खुद बनाया। 
कैसे याद ना करू उन पकवानो को,
जो बड़े प्यार से आप बनाकर खिलाती थी। 

शायद ही कोई आँखे  आपकी बिदाई पर ना रोइ होगी, 
सेहम गए सब और पिछे अकेला हम सब को छोड़ गई।
सिखाया तो बहुत है आपने पर नजाने कितना संभल पाएंगे, 
पास ना होकर भी शायद आपको मेहुस हम करते रहेंगे। 

याद आपकी नहीं आएगी, ये बोलना तो संभव नहीं होगा 
पर आप अपना हाथ हम पर रखना 
ये  मेहसूस आपके होने का हमें दिलाएगी। 











Wednesday, September 28, 2022

63. नारी साधारण नहीं ||

                                      

तू ज्वाला है, तु शांत शीतल छाया भी हैं,
तू बहती धारा है, तू क्रोध से भरी सुनामी भी हैं।
तुझी में लक्ष्मी बाई है, तू ही मीरा है
तुझी से ये जग है, तुझी से मेरा घर है। 
तू नारी है, तू साधारण नहीं
तुझी में दुर्गा सरस्वती है।

तू ना साधारण , शक्ति तेरी विशाल है
हाथ उठा दे तो वो आशीष बन जाए
और मुट्ठी बंद ले तो वो अंत हो जाए ।
तू अबला नहीं, शांत रहना बस तेरी आदत है 
कमजोर समझा जिन राक्षसों ने तुझे 
दुनिया से उनका वजूद उजड़ चुका  है ।
तू नारी है, तुझी में महाकाली है ।

रोक ना पाया कोई, कोशिशे हज़ार हुई है 
जब बात आत्मविश्वास की आई हैं। 
अंतरिक्ष में जो पहुंच गई वो कल्पना हैं, 
बिना पैर जो एवेरेस्ट चढ़ गई वो अरुणिमा हैं। 
हालातो को झुका दे , वो शक्ति तुझमें है।
तू नारी है, तुझी में मां आदी शक्ति है ।

तू मां बनकर प्यार लुटती है,
हर पल तैयार, थकती नहीं है।
तू घर में खुशियां बिखेरती है,
तू घर से निकल देश को चलती है। 
तू नारी है, तू ही  महालक्ष्मी है ।

जब बात आई स्वाभिमान की
तो क्रूरता का संहार किया वो तू ही फूलन देवी है ।
ये नवरात्र है, शक्ति का स्वरूप तुझमें है। 
बांड मुट्ठी, तोड़ जंजीरे,
ये समाज तुझे क्या रोकेगा
तू खुद एक उड़ता परिंदा है ।
















Monday, September 26, 2022

62. Be Proud !!!! "You are a Agarwal"

कहते है कि किसी भी समाज का धरोहर उसका इतिहास होता हैं। और अग्रवंश का इतिहास हर एक अग्रवाल को गर्व मेहसूस करवाता हैं। 

अग्रवाल वंश के राजा महाराज अग्रसेन जी ने 5900 साल पहले ही अग्रवाल समाज के भविष्य कि परिकल्पना कर ली थी। ये 5 बातें जो आज मैं यहाँ लिख रहा हूँ, आपको एक अग्रवाल होने पर गर्व मेहसूस करवाएगा। 

1. महाराज अग्रसेन ने एक ईंट  - एक रुपया की प्रथा शुरू करवाई थी जिसका मतलब हैं कि कोई भी  जब अग्रोहा में बसने आता था तो अग्रोहा शहर  के हर घर से उस इंसान को एक ईंट और एक रुपया दिया जाता था। एक ईंट इसलिए ताकि वो एक-एक ईंट से अपना घर बना सके और एक रुपया इसलिए ताकि एक-एक रुपया जमा कर वो  नया व्यापार कर सके। 

यहाँ महाराज अग्रसेन जी ने 2 बाते सिखाई। पहली Teamwork, अगर लोगो का साथ मिलता रहा तो हर कोई कामयाब हो सकता हैं।  दूसरा Business Development, महाराज अग्रसेन जी से व्यापार को बढ़ावा दिया नाकि नौकरी को। 

इसलिए कोई भी अग्रवाल ज्यादा दिन तक किसी कि नौकरी नहीं कर सकता। देर-सवेर ही सही पर व्यापार तो करेगा ही।  व्यापार खून में जो दाल दिया था इन्होने। 

2. एक दिन महाराज अग्रसेन की सभा चल रही थी कि महाराज के मंत्री ने हिचकीचाते  हुए महाराज से कहाँ -"महाराज आपके पिताजी का एक सपना था जो आपने अभी तक पूरा नहीं किया।"

महाराज भी आश्चर्य से पूछे कि ऐसा कौनसा अधूरा सपना हैं  उनके पिताजी का जिसे अभी तक वो पूरा नहीं कर पाये 

मंत्री ने जवाब दिया कि उनके पिताजी चाहते थे कि अग्रोहा में एक भव्य महल का निर्माण हो जिसमे हर एक सुख-सुविधा  मौजूद हों। 

महाराज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की महल उनके पिताजी का सीर्फ एक सपना था, ज़िद  नहीं।  महाराज अपना धन महल बनाने में खर्च नहीं करना चाहते थे जो आने वाले समय में सीर्फ लोगो के मनोरंजन का ही पात्र रहेगा और किसी को इस से कोई फ़ायदा नहीं होगा। इसके बदले महाराज अपना धन व्यापार, कला, में लगाना ज्यादा जरुरी समझा जिससे आने वाले समय में लोगो का और साथ ही साथ समाज का भी भला होगा।  हर किसी का लाभ होगा। 

Investment की better  strategy की  निभ तो  उसी दिन रख दी गई थी। आज भी जब अग्रवाल invest करता है तो आने वाले लम्बे समय तक का लाभ पहले ही अंकित कर लेता है। 

3. महाराज अग्रसेन ने माँ लक्मी की कड़ी तपस्या कि थीं जिससे  फल स्वरुप उन्हें ये वरदान मिला कि माँ लक्मी अग्रवंश की  कुल देवी कहलाएगी। सुख और समृद्धि हमेसा अग्रवंश में रहेगी। 

इसलिए हालात चाहे जैसे भी हो पर हर  अग्रवाल अपने मेहनत कि रोटी खुद कमाता हैं।  रास्ते में चलते हर एक अग्रवाल को देखकर यही लगता हैं कि बंदा अच्छे पैसे वाले और संस्कारी घर से हैं। 

4. हमारे राजा-महाराजा छत्रिया हुआ करते थे पर महाराज अग्रसेन जन्म से एक बैसि जाती के थे। एक बैसि जाती के होने के बावजूद  अपनी सूद -बुद और बहादुरी के कारण छत्रिया होने का सम्मान मिला और चवर, छत्र, तलवार धारण करने का सम्मान मिला। 

इसलिए जब घर में शादी होती हैं तब दूल्हे को इस कदर सजाया जाता है - सर पे किलंगी,   ऊपर छत्र  और कमर पे तलवार धारण कर इसकदर बारात लेकर निकलता हैं जैसे साक्षात् महाराज अग्रसेन जी की सुशोभित झांकी निकल रही हो। 

5.  इंसान अपने उम्र के हिसाब से काम करता हैं। जब साशन करना था तब राजा बनकर सिंहासन  पर बैठे और जब तप करने की उम्र आई तब राज-पाठ अपने बेटों को सौंप कर तपस्या करने निकल पड़े। 

Retirement कि better policy तो उसी दिन सीखा दी थी महाराज जी ने  जो हम आज भी निभाते हैं। पूरी मेहनत लगाकर हम अपना empire बनाते हैं और जब मेहनत करने की उम्रः ख़त्म हो जाती हैं तब अपने empire की बागदौड अपनी अगली पीढ़ी को सौंप कर धर्म के काममो में लग जाते हैं।

जय अग्रसेन जी ||  


Saturday, July 23, 2022

61. महीना ये सावन का |

महीना ये सावन का और झूम रहा ये मन है 
बेचैन मन को जो शांत करदे, ये मीठी सी वो  हवाएं हैं। 
बचपन को फिर जिलू ये एहसास वो  बारिश बताती हैं 
छपक छपक  कर कूदते, भीगते, हस्ते थे, वो मस्त जिंदगी आज याद आती है। 
महीना ये सावन का सुकुन  दे जाती है। 

महीना ये सावन का और शुद्ध हो रही ये आत्मा हैं 
आश्वस्त से स्वस्थ जीवन, उपवास करना ये सिखाती हैं। 
भक्ति की शक्ति से, ज्योतिर्लिंगों की परिक्रमा ये करवाती है 
बोल-बम के नारों से, ऊर्जा जो भर देती वो तन - मन  हैं। 
महीना ये सावन का शिव-गोरा के प्रेम को दर्शाती हैं। 

महीना ये सावन का और रिश्तों में मिठास भर रही है 
भाई बहन के प्यार को और गहरा वो बना दे रही  है।
हलकी फुल्की नोक झोक से रक्षा का प्रतिक समझा रही हैं 
पार्वती के हाथों बाँधी  डोर नारायण को, वो प्रेम समझा रही हैं। 
महीना ये सावन का भाई बहन को और करीब ला रही हैं। 

महीना ये सावन का और झूला झूल रहे नन्दलाल है 
दही हँडिया फुट रहीं और कृष्णा धुन में झूम रहे लोग है। 
नन्द घर आनंद भायो से अपने घर आनंदमय हो रहे हैँ 
महीना ये सावन का खुशिया बिखेर रहा है। 

महीना ये सावन का और ज्ञान की शक्ति बड़ रही हैं 
चौमासा मना रहे संत और लोग अपनी बुद्धि बड़ा रहे है। 
सेवा- भक्ति हो रहीं हर ओर, आत्मा पवित्र बना रहे हैं 
महीना ये सावन का जीवन सुधार  रहे है। 
महीना ये सावन का जीवन सुधार  रहे है। 








Saturday, June 25, 2022

60. त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा ।

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा 
ये काले मेघ  जो आसमान में छा रहा। 
रौद्र  रूप ये भयंकर मेघों का, 
रात-दिन ये धरती को उजाड़  रहा। 

कहीं रास्ते बंद हो रहे, 
तो कहीं वो उच्चे पहाड़ झुक रहे है। 
कहीं खेत उजड़ रहे, 
तो कहीं लोग बेघर हो रहे है। 
कहीं नदियां समुद्र का रूप ले रहीं,  
तो कहीं लोग तिनके की तरह बह रहे हैं । 
ये मेघ काले  नींद-चैन  उजाड़ रहे हैं। 

गरज रहे ये मेघ भयंकर, 
दिल की धड़कन को दहला रहे हैं। 
चमक रही ये बिजली, 
डरावने अँधेरे का एहसास दिला रही हैं। 
ये मेघ काले अपना प्रचंड प्रकोप दिखा रहे हैं।

चारो तरफ ये बरस रहे, 
लोगो कि आस्था को लांग रहे है । 
ये मेघ काले, दाने-दाने को तरसा रहे है।

होंठ यहाँ लोगों के, मिनत्ते मांग रही हैं, 
हाथ जुड़ रहे और सर झुक रहे हैं, 
घुटने तक कर मदत मांगी जा रही हैं।
अपने अपनों को डूबता देख रहे है। 
अपने अपनों को बर्बाद होते देख रहे है। 
ये मेघ काले आत्मविश्वास को मिटा रहे हैं। 

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा। 
हे नटवर नागर ! ये आज तुझे पुकार रही है। 
तोडा घमण्ड इंद्रा का,  बचाया गोकुल को आपने,
रो रो कर मांग रही ये धरती ! शरणागत बस आप से। 
ये प्रचंड प्रकोप मेघो का, 
कब तक तड़पा तड़पा कर मरेंगे हमें। 

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा 
ऐ काले मेघ बसकर, अब तू छट जा !!
बसकर अब तू शांत हो जा।






















Saturday, April 23, 2022

59. INCREDIBLE APRIL....

महीना ये अप्रैल का,सच्च  में अनोखा है। 
नई उमंगों से, नई उम्मीदों से,
नई चाहतो से, नई तरकीबों  से,
भरा पूरा ये माह अप्रैल का…!
हम में नई ऊर्जा का संचार करता है ।

रीति-रिवाजों से, हर्षोल्लास से
नए साल का स्वागत होता है ।
नव वर्ष पूरे विश्व में मनाया जाता है ।

कहीं पर नवरात्रि का शोर है,
तो कहीं रमादान में दुवाओं का जोर है ।
कहीं नन्हें कदमों में नवदुर्गा है,
तो कहीं नमाजों  से खिल उठता ये संसार है ।
महीना ये अप्रैल का सच्च में अनोखा है ।

कहीं राम नवमी में भगवा लहराता है, 
तो कहीं महावीर जयंती पर सत्य का प्रचार होता है।
कहीं राम नाम से नई ऊर्जा का संचार होता है, 
तो कहीं महावीर स्वामी का परचम लहराता है ।
महीना ये अप्रैल का सच्च में अनोखा है ।

कहीं बैशाकी में झूमता ये देश है
तो कहीं बसंत ऋतु का स्वागत खुशियां लाता है। 
कहीं पर खालसा दिवस मनाया जाता है,
तो कहीं खेतो में नई फसलों को उगाया जाता है। 
महीना ये अप्रैल का सच्च में अनोखा है ।

कहीं हनुमान जयंती में नगाड़ों का शोर है
तो कहीं गुड फ्राइडे में , Jesus को याद किया जाता है ।
कहीं पर बजरंग बली का जय कारा लगता है 
तो कहीं Jesus की क़ुरबानी को याद किया जाता है ।
महीना ये अप्रैल का सच्च में अनोखा है ।

कहीं गुड्डी परवा में गले मिलते लोग है,
तो कहीं पिठा से मुंह मीठा करता ये असम है ।
कहीं हंसता मुस्कुराता ये देश हैं,
तो कहीं जिंदगी के नई पाठ सिखते-सिखाते ये लोग महान है ।
महीना ये अप्रैल का सच्च में अनोखा है ।

महीना तो बस यहीं एक है। 
जोड़ता देश को, जोड़ता दिलों को
और तोड़कर भेदभाव को…!!
भुलाकर पिछले मन-मुटाव को ,
बस खुशियां बिखेरता है ।
सच्च  में ये महीना अप्रैल का बहुत अनोखा है ।








Thursday, April 7, 2022

58. झलक कुछ राम की।

इंतज़ार की घड़ी बस खत्म हुई थी,
अयोध्या में खुशियाँ छाई थी। 
राजा दशरथ क्या खूब नाच रहे थे, 
माँ कौशल्या की गोद भर गई थी। 
धरती-अम्बर गद-गद मुस्का रही थी,
राम का जन्म हुआ है , बधाइयाँ ही बधाइयाँ बट  रही थी। 

बाल रूप में नारायण अवतार लिए थे।  
भविष्यवाणी तो हो ही चुकी थी....!!
प्रेरणा करोड़ो  का ये राम बनेगा,
राजा अयोध्या का बनकर, ये तीनों लोकों पर राज करेगा। 
कष्टओ  का जीवन में अम्बार लगेगा......!!
पर समय के अंत तक राम नाम हमेशा अमर रहेगा। 

साधारण से ये राम, बचपन को जीता था। 
साधारण से ये राम, बाल-क्रिड़ाये  करता था। 
राजकुमार राम नहीं, बस राम बनकर ये मन को मोह लेता था, 
सादगी का परिचय राम हर बार देता था। 

धनुष तोड़कर शर्तों की प्रथा तो तोड़ा था,
एक पति-ब्रत का वचन देकर, सीता का मान बढ़ाया था।  
चौदह वर्ष का बनवास हस्ते हस्ते स्वीकार कर लिए था, 
राज सिंघासन को छोड़ काँटों  पर अपना आशियाना सजाया था। 
अंत समय में अपने पिता को देख भी ना पाया था,
सीता के वियोग में पल पल खून के आँसू रोया था।  
पर हर बार राम आपने शांति और सैयाम  का परिचय दिया था । 

लगाया गले उनको, जिनको  समाज ने धित्कारा था, 
जात-पात की बेड़ियाँ  तोड़ी और इंसानियत से सबको जोड़ा  था।  

विनम्र  होकर समुद्र से रास्ता माँगा, 
रात दिन प्रार्थना की,  पर हलचल ना होने पर, 
विशाल समुद्र को अपना प्रकोप दिखाया था । 
राम-सेतु के निर्माण में, छोटी गिलहरी का भी मान बढ़ाया, 
राम आपने तो इंसानो के साथ पशुओं को भी गले से लगाया था। 

ना शक्ति थी, ना सेना थी, ना कोई रथ था और ना था कोई सेनापति,
ना कोई वीर योद्या था, ना थे  कोई भयंकर अस्त्र-सस्त्र। 
और भीड़ गए आप राम उस रावण से जो त्रिलोक का विजेता  था। 

क्रोध से पहले, विनम्रता  रावण से भी की, 
पर ना मानने पर, छिड़ गई वो भयंकर लड़ाई थी। 
खड़ा किया वानरों को सामने उनके,
जिसकी सेना हर युद्ध-कौशल में बेमिशाल थी। 
आत्म विश्वास से लड़े राम, और तोड़ा घमंड 
जो दशानन  में  भर भर के था  कभी। 

सम्मान रावण को भी दिया था , 
भाई लक्ष्मण को वेदों का ज्ञान दिलवाकर। 
विभीषण को लंका का राजा बनाया, 
सह-सम्मान  सीता को वापस लाया था। 
अपनी मर्यादा का परिचय डंके- की- चोट पर  दिया था। 

लहराया परचम भगवा का आसमान में 
और गूंज उठा भूमण्डल, राम के जयकारों से। 
वचन पूरा कर राम पधारे अयोध्या 
और दीप जले थे आंगणो में। 
राजा बने थे राम, हर मुश्किलों से लड़कर,
सिखाया  संसार को,  अगर जिना  है तो होना होगा निडर। 
 
वर्ष बीत गए,  राम कथा अमर हो गई, 
राम नाम से वैकुण्ठ मिले, ये बात दुनिया को समझ आ गई। 
ये बात दुनिया को समझ आ गई।