Saturday, June 25, 2022

60. त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा ।

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा 
ये काले मेघ  जो आसमान में छा रहा। 
रौद्र  रूप ये भयंकर मेघों का, 
रात-दिन ये धरती को उजाड़  रहा। 

कहीं रास्ते बंद हो रहे, 
तो कहीं वो उच्चे पहाड़ झुक रहे है। 
कहीं खेत उजड़ रहे, 
तो कहीं लोग बेघर हो रहे है। 
कहीं नदियां समुद्र का रूप ले रहीं,  
तो कहीं लोग तिनके की तरह बह रहे हैं । 
ये मेघ काले  नींद-चैन  उजाड़ रहे हैं। 

गरज रहे ये मेघ भयंकर, 
दिल की धड़कन को दहला रहे हैं। 
चमक रही ये बिजली, 
डरावने अँधेरे का एहसास दिला रही हैं। 
ये मेघ काले अपना प्रचंड प्रकोप दिखा रहे हैं।

चारो तरफ ये बरस रहे, 
लोगो कि आस्था को लांग रहे है । 
ये मेघ काले, दाने-दाने को तरसा रहे है।

होंठ यहाँ लोगों के, मिनत्ते मांग रही हैं, 
हाथ जुड़ रहे और सर झुक रहे हैं, 
घुटने तक कर मदत मांगी जा रही हैं।
अपने अपनों को डूबता देख रहे है। 
अपने अपनों को बर्बाद होते देख रहे है। 
ये मेघ काले आत्मविश्वास को मिटा रहे हैं। 

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा। 
हे नटवर नागर ! ये आज तुझे पुकार रही है। 
तोडा घमण्ड इंद्रा का,  बचाया गोकुल को आपने,
रो रो कर मांग रही ये धरती ! शरणागत बस आप से। 
ये प्रचंड प्रकोप मेघो का, 
कब तक तड़पा तड़पा कर मरेंगे हमें। 

त्राहि त्राहि मचा रहीं ये वसुंधरा 
ऐ काले मेघ बसकर, अब तू छट जा !!
बसकर अब तू शांत हो जा।






















2 comments:

  1. शीर्षक बहुत अच्छा चुना है जो अपने आप सब कुछ बयां कर देता है

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