बप्पा !!!
तू विघ्नहर्ता कहलाता हैं,
पर मेरे विघ्न क्यों नहीं हरता हैं?
यू मूर्ति बनकर बैठा है,
सुनकर भी मेरी बाते अनसुना कर रहा हैं।
बप्पा !!!
तू विघ्नहर्ता कहलाता हैं।
तू देवों में सबसे निराला है,
प्रथम पूज्य का सम्मान तुझे मिला हैं।
मंगल कार्य की मंगल मूर्ति तू बना हैं,
गजानन, विनायक अनेको नाम से तू जाना गया हैं।
फिर क्यों बाप्पा !!
आज तू मुझे देख मौन बैठा हैं ?
जिम्मेदारी निभाते-निभाते अपना मुख समर्पित कर दिया,
जिम्मेदारी निभाते-निभाते अपना एक दन्त खो दिया,
कुछ खोकर भी तू गजमुख विनायक बन गया।
उस टूटे दन्त से महाभारत रच दिया।
अब क्या सजा दू तुझे,
बप्पा !!
तू बस मेरी जिम्मेदारी ही ढंग से ना निभा पाया।
हाँ !! तुझसे शिकायत मैं बहुत रखता हूँ
क्यूंकि पिता-भाई-दोस्त तुझे सब कुछ मैं मानता हूँ
फिर भी
बप्पा तेरा स्वागत मैं ढोल- नगाड़े से करता हूँ।
और वहीं तेरे जाने पर
पलके झुकाये, तुझे बिदा करता हूँ।
सुखकर्ता दुखहर्ता तू कहलाता हैं,
तेरे भक्तो कि भिड़ में शायद मैं ही कहीं खो गया हूँ।
तू हैं, इसका एहसास हैं मुझे
पर तू मेरे साथ हैं, ये विश्वास कब होगा मुझे ?
बिन मांगे भी बहुत कुछ दिया हैं,
बस कुछ शिकायतें हैं तुझसे,
क्युकि डरता नहीं, प्यार है तुझसे।
तू बस साथ रहना
यही प्रार्थना हैं
बप्पा तुझसे।
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